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एचएसजीपीसी में सत्ता संघर्ष गहराया: झींडा ने समितियां भंग कीं, दादूवाल ने इसे असंवैधानिक बताया

 




हरियाणा सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (HSGPC) में इन दिनों नेतृत्व और संविधान को लेकर गहरी खींचतान चल रही है। इस विवाद की जड़ में अध्यक्ष जगदीश सिंह झींडा द्वारा सभी उप-समितियों और उनके अध्यक्षों को भंग करने का निर्णय है, जिसे उन्होंने संगठन में अनुशासन और पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से लिया बताया। उनका कहना है कि कई नवनिर्वाचित सदस्यों की मांग थी कि नई नियुक्तियाँ की जाएँ जो वर्तमान जनादेश के अनुरूप हों।


वहीं दूसरी ओर, पूर्व कार्यवाहक अध्यक्ष बलजीत सिंह दादूवाल ने इस कदम को असंवैधानिक और समिति के नियमों के खिलाफ बताया है। दादूवाल का दावा है कि उप-समितियाँ एक वैध कार्यकारिणी बैठक में बनाई गई थीं, जिसमें झींडा स्वयं उपस्थित थे और दस सदस्यों ने हस्ताक्षर कर सहमति दी थी। केवल एक सदस्य बैठक से पहले ही जा चुका था, जिससे कोरम पूरा था। ऐसे में दादूवाल का कहना है कि अध्यक्ष अकेले इन समितियों को भंग नहीं कर सकते।


यह विवाद केवल प्रशासनिक नहीं है, बल्कि यह संगठन की आत्मा और दिशा को लेकर भी है। झींडा जहाँ खुद को सुधारवादी नेता के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं, वहीं दादूवाल संविधान की गरिमा और सामूहिक निर्णय प्रक्रिया की रक्षा की बात कर रहे हैं। सिख संगत इस पूरे घटनाक्रम को चिंतित नजरों से देख रही है, क्योंकि यह आंतरिक सत्ता संघर्ष सेवा और एकता जैसे मूल उद्देश्यों को पीछे छोड़ता दिख रहा है।


इस टकराव में नेतृत्व की शैली भी अलग-अलग नजर आ रही है — झींडा ने ऑपरेशन ब्लू स्टार की बरसी पर भावनात्मक प्रतीकों का सहारा लिया, जबकि दादूवाल ने ग़ुरुद्वारा ज़मीन पर बने मीरी-पीरी मेडिकल कॉलेज जैसे संस्थानों पर कानूनी अधिकार जताने पर ज़ोर दिया। अब सवाल यह है कि क्या HSGPC इस संघर्ष से उबरकर एक मजबूत और एकजुट संस्था बन पाएगी, या फिर यह दरार और गहरी होती जाएगी?


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