नई दिल्ली, 6 अक्टूबर 2025 — भारत के सर्वोच्च न्यायालय में आज एक अभूतपूर्व और निंदनीय घटना घटी जब एक वरिष्ठ अधिवक्ता ने मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई पर जूता फेंकने की कोशिश की। यह घटना उस समय हुई जब अदालत में नियमित सुनवाई चल रही थी। आरोपी अधिवक्ता राकेश किशोर (71) ने यह कृत्य "सनातन धर्म के अपमान" के विरोध में किया, जिसके बाद सुरक्षा कर्मियों ने उन्हें तुरंत हिरासत में ले लिया।
राकेश किशोर ने अदालत में एक चिट्ठी भी लहराई जिसमें लिखा था—“सनातन धर्म का अपमान, नहीं सहेगा हिंदुस्तान।” उन्होंने दावा किया कि खजुराहो मंदिर से जुड़ी एक टिप्पणी से उन्हें गहरा आघात पहुंचा है, जिसमें CJI ने कथित रूप से कहा था, “जाओ मूर्ति से कहो कि अपना सिर खुद ठीक कर ले।” इस टिप्पणी को उन्होंने धार्मिक भावनाओं के विरुद्ध माना।
मुख्य न्यायाधीश गवई ने घटना पर संयमित प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “इन बातों से हमें कोई फर्क नहीं पड़ता। कार्यवाही जारी रखिए।” अदालत की गरिमा बनाए रखते हुए उन्होंने सुनवाई को बिना किसी बाधा के आगे बढ़ाया।
बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने इस घटना की कड़ी निंदा करते हुए राकेश किशोर को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू कर दी गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस घटना को “अत्यंत निंदनीय” बताया और कहा कि “ऐसे कृत्यों का हमारे लोकतंत्र में कोई स्थान नहीं है।”
यह घटना देशभर में चर्चा का विषय बन गई है, विशेषकर इसलिए क्योंकि मुख्य न्यायाधीश गवई भारत के पहले दलित CJI हैं। कई सामाजिक कार्यकर्ताओं और विधि विशेषज्ञों ने इसे जातिगत पूर्वाग्रह और धार्मिक कट्टरता की खतरनाक मिसाल बताया है।
सुप्रीम कोर्ट परिसर में सुरक्षा व्यवस्था को और कड़ा कर दिया गया है, और इस मामले की जांच जारी है। न्यायपालिका की स्वतंत्रता और गरिमा की रक्षा के लिए यह घटना एक चेतावनी है कि असहमति का स्वर हिंसा में नहीं, संवैधानिक माध्यमों में व्यक्त होना चाहिए।
If supreme court judge is facing such things, then what could be condition of common man?
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