चंडीगढ़, 13 अक्टूबर 2025 —
हरियाणा पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी आईजीपी वाई पुरन कुमार की आत्महत्या ने पूरे राज्य को झकझोर कर रख दिया है। इस दुखद घटना के बाद राज्यभर में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं, जिनमें सामाजिक कार्यकर्ता, राजनीतिक दलों के नेता और आम नागरिक शामिल हैं। प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि आईजीपी पुरन कुमार को लंबे समय से जातीय भेदभाव और संस्थागत उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा था, जिससे मानसिक दबाव में आकर उन्होंने यह कदम उठाया।
आईजीपी कुमार की आत्महत्या से जुड़ा एक कथित सुसाइड नोट सामने आया है, जिसमें उन्होंने अपने साथ हुए भेदभाव और अपमानजनक व्यवहार का उल्लेख किया है। हालांकि पुलिस विभाग ने अभी तक इस नोट की पुष्टि नहीं की है, लेकिन यह मामला तेजी से राजनीतिक और सामाजिक बहस का विषय बन गया है। कई दलों ने इसे सामाजिक न्याय और संस्थागत जवाबदेही से जुड़ा मुद्दा बताया है।
प्रदर्शनकारियों ने मांग की है कि इस मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में विशेष जांच दल (SIT) द्वारा की जाए ताकि निष्पक्षता सुनिश्चित हो सके। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि उच्च पदों पर बैठे कुछ अधिकारियों ने जानबूझकर आईजीपी कुमार को मानसिक रूप से प्रताड़ित किया और उनकी शिकायतों को नजरअंदाज किया गया।
हरियाणा के कई जिलों में विरोध मार्च निकाले गए हैं, जिनमें “न्याय दो”, “जातिवाद बंद करो” और “आईजीपी पुरन कुमार को न्याय मिले” जैसे नारे गूंजते रहे। कई सामाजिक संगठनों ने इसे जातीय असमानता के खिलाफ एक निर्णायक मोड़ बताया है और सरकार से तत्काल कार्रवाई की मांग की है।
राज्य सरकार ने फिलहाल एक आंतरिक जांच के आदेश दिए हैं, लेकिन विपक्ष और सामाजिक संगठनों का कहना है कि यह पर्याप्त नहीं है। वे इस मामले को राष्ट्रीय स्तर पर उठाने की तैयारी कर रहे हैं।
आईजीपी पुरन कुमार की आत्महत्या ने न केवल पुलिस विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि यह भी स्पष्ट कर दिया है कि जातीय भेदभाव और मानसिक उत्पीड़न जैसे मुद्दों पर अब चुप्पी नहीं चलेगी। यह घटना एक बड़े सामाजिक विमर्श की शुरुआत बन सकती है, जिसमें संस्थागत सुधार और संवेदनशीलता की आवश्यकता को केंद्र में रखा जाएगा।
Comments
Post a Comment