सिडनी, 13 अक्टूबर 2025 —
अंटार्कटिका और दक्षिणी महासागर में हो रहे तेज़ बदलावों ने वैश्विक जलवायु विशेषज्ञों को गंभीर चिंता में डाल दिया है। ऑस्ट्रेलियन अंटार्कटिक डिवीजन और नेचर पत्रिका में प्रकाशित नवीनतम शोध के अनुसार, अंटार्कटिका में समुद्री बर्फ की मात्रा में अभूतपूर्व गिरावट दर्ज की गई है, जो पृथ्वी के जलवायु संतुलन के लिए एक गंभीर खतरा बन सकती है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि समुद्री बर्फ के तेजी से पिघलने से महासागरों में मौजूद कार्बन सिंक प्रणाली बाधित हो सकती है। यह प्रणाली वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर गहरे समुद्र में संग्रहित करती है, जिससे पृथ्वी के तापमान को नियंत्रित रखने में मदद मिलती है। लेकिन जब बर्फ की परत हटती है, तो यह प्रक्रिया कमजोर पड़ जाती है — जैसे किसी बोतल का ढक्कन खुल जाए और अंदर का दबाव खत्म हो जाए। इससे वातावरण में कार्बन की मात्रा बढ़ सकती है और ग्लोबल वार्मिंग की गति तेज़ हो सकती है।
शोधकर्ताओं ने यह भी बताया कि अंटार्कटिका में बर्फ की स्थिरता और समुद्री परतों की संरचना इस संकट को रोकने में अहम भूमिका निभा सकती है। यदि महासागर की परतें अधिक मिश्रित और अस्थिर हो जाती हैं, तो बर्फ की पुनःस्थापना और कार्बन अवशोषण की क्षमता और भी कम हो जाएगी।
इस अध्ययन के प्रमुख वैज्ञानिक प्रोफेसर नेरिली अब्राहम ने कहा, “हम अंटार्कटिका में ऐसे बदलाव देख रहे हैं जो पहले केवल भविष्यवाणियों में थे — अब वे वास्तविकता बन चुके हैं।” उन्होंने चेतावनी दी कि यदि वैश्विक कार्बन उत्सर्जन पर नियंत्रण नहीं किया गया, तो यह प्रक्रिया अपरिवर्तनीय हो सकती है।
यह रिपोर्ट न केवल जलवायु वैज्ञानिकों के लिए चेतावनी है, बल्कि नीति निर्माताओं और वैश्विक नेतृत्व के लिए भी एक स्पष्ट संकेत है कि जलवायु परिवर्तन अब भविष्य की समस्या नहीं, बल्कि वर्तमान का संकट है। अंटार्कटिका की बर्फ का पिघलना एक दूरस्थ घटना नहीं, बल्कि एक वैश्विक चेतावनी है — जिसका असर हर देश, हर महासागर और हर जीवन पर पड़ सकता है।
Comments
Post a Comment