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वैश्विक स्वास्थ्य रिपोर्ट में खुलासा: मृत्यु दर में गिरावट, लेकिन युवाओं की मौतें और स्वास्थ्य असमानताएं बढ़ीं


बर्लिन, 13 अक्टूबर 2025 — 

प्रतिष्ठित ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज (GBD) अध्ययन की नवीनतम रिपोर्ट ने वैश्विक स्वास्थ्य पर गहराते संकट की ओर ध्यान आकर्षित किया है। द लैंसेट में प्रकाशित और वर्ल्ड हेल्थ समिट 2025 में प्रस्तुत इस रिपोर्ट के अनुसार, विश्व स्तर पर कुल मृत्यु दर में गिरावट आई है, लेकिन युवाओं और किशोरों में मौतों की संख्या चिंताजनक रूप से बढ़ रही है। साथ ही, स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच और गुणवत्ता में असमानता भी गंभीर रूप से बढ़ी है।


इस अध्ययन को इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन (IHME) द्वारा तैयार किया गया है, जिसमें 204 देशों और क्षेत्रों से 310,000 से अधिक स्रोतों का विश्लेषण किया गया। रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले कुछ दशकों में बाल मृत्यु दर और वृद्धावस्था से जुड़ी मौतों में उल्लेखनीय गिरावट आई है, लेकिन 15 से 35 वर्ष के आयु वर्ग में आत्महत्या, दुर्घटनाएं, और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं के कारण मृत्यु दर में वृद्धि दर्ज की गई है।


इसके अलावा, रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट किया गया है कि गैर-संक्रामक रोग जैसे हृदय रोग, मधुमेह, कैंसर और स्ट्रोक अब वैश्विक स्वास्थ्य बोझ का सबसे बड़ा हिस्सा बन चुके हैं। इन बीमारियों से जुड़ी मौतें और विकलांगता दर लगातार बढ़ रही हैं, खासकर निम्न और मध्यम आय वाले देशों में, जहां स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच सीमित है।


स्वास्थ्य असमानताओं की बात करें तो रिपोर्ट में यह दर्शाया गया है कि अमीर और गरीब देशों के बीच इलाज की गुणवत्ता, पोषण, और जीवनशैली संबंधी सुविधाओं में भारी अंतर है। यहां तक कि एक ही देश के भीतर भी शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता में बड़ा अंतर देखा गया है। यह असमानता कोविड-19 महामारी के बाद और अधिक गहराई से सामने आई है।


वर्ल्ड हेल्थ समिट में विशेषज्ञों ने इस रिपोर्ट को वैश्विक स्वास्थ्य नीति के लिए चेतावनी की तरह देखा है। उन्होंने कहा कि यदि युवाओं की बढ़ती मौतों और स्वास्थ्य असमानताओं को गंभीरता से नहीं लिया गया, तो यह आने वाले वर्षों में सामाजिक और आर्थिक अस्थिरता को जन्म दे सकता है।


इस रिपोर्ट ने नीति निर्माताओं, स्वास्थ्य संगठनों और वैश्विक नेतृत्व को यह संदेश दिया है कि अब समय आ गया है कि गैर-संक्रामक रोगों की रोकथाम, मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार, और स्वास्थ्य में समानता को प्राथमिकता दी जाए। यह केवल एक स्वास्थ्य संकट नहीं, बल्कि एक सामाजिक न्याय का मुद्दा भी बन चुका है।



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