
संयुक्त राष्ट्र ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि यदि मौजूदा हालात जारी रहे तो इस सदी के अंत तक यानी वर्ष 2100 तक वैश्विक तापमान 2.3 से 2.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है।
यह वृद्धि पेरिस समझौते के तहत तय 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा से कहीं अधिक है और मानव सभ्यता के लिए गंभीर खतरे का संकेत है। रिपोर्ट के अनुसार, ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुँच चुका है और मौजूदा नीतियों तथा देशों की प्रतिबद्धताओं के बावजूद तापमान वृद्धि को नियंत्रित करना लगभग असंभव होता जा रहा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यदि समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए तो समुद्र-स्तर में तेज़ बढ़ोतरी, भीषण बाढ़, सूखा, चक्रवात और जंगल की आग जैसी आपदाएँ और अधिक घातक रूप ले सकती हैं। संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने स्पष्ट किया है कि मानवता अब भी जलवायु संकट से बच सकती है, लेकिन इसके लिए जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता घटाना, नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देना और उत्सर्जन में कटौती करना अनिवार्य है।
पर्यावरण वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि देशों ने अपने वादों को समय पर पूरा नहीं किया तो आने वाले दशकों में दुनिया को भूख, पलायन और स्वास्थ्य संकट जैसी गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। पेरिस समझौते के तहत 195 देशों ने वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री तक सीमित करने का संकल्प लिया था, लेकिन अब तक की नीतियाँ इस लक्ष्य से काफी पीछे हैं।
भारत ने 2070 तक नेट-ज़ीरो उत्सर्जन का लक्ष्य रखा है और सौर ऊर्जा सहित नवीकरणीय स्रोतों पर निवेश बढ़ा रहा है। संयुक्त राष्ट्र की यह चेतावनी स्पष्ट करती है कि यदि दुनिया ने तुरंत कदम नहीं उठाए तो जलवायु परिवर्तन मानव अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा खतरा बन जाएगा और यह केवल पर्यावरण का नहीं बल्कि आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक स्थिरता का भी प्रश्न होगा।
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